आश्रय राग की परिभाषा in Hindi / जन्य राग की परिभाषा – जन्य का अर्थ है उत्पन्न होने वाला । थाटों से ही रागों की उत्पत्ति माना गया है ।
आश्रय राग या थाट – वाचक राग की परिभाषा
उत्तर भारतीय संगीत पद्धति में प्रत्येक थाट का नाम उस थाट से उत्पन्न होने वाले किसी राग – विशेष ‘ जन्य राग ‘ के नाम पर ही देखा जाता है । जिस जन्य राग ( उत्पन्न होने वाले राग ) का नाम थाट को दिया जाता है , उसी को ‘ आश्रय राग ‘ यह कहते हैं ;
जैसे ‘ सा रे ग म प ध नि ‘ , इस स्वर – समुदाय से विदित होता है कि भैरव थाट है । इसका नाम भैरव थाट इसलिए रखा गया , क्योंकि इन्हीं स्वरों से और इसी थाट से प्रसिद्ध राग भैरव ‘ की उत्पत्ति हुई । इस प्रकार राग भैरव , भैरव थाट का आश्रय – राग हुआ ।
आश्रय राग को ही ‘ थाट – वाचक राग ‘ भी कहते हैं ।
किसी भी थाट से उत्पन्न होने वाले ( जन्य ) रागों में आश्रय – राग का थोड़ा बहुत अंश अवश्य दिखाई देता है , किन्तु ऐसा नहीं समझना चाहिए कि आश्रय राग सभी जन्य रागों का उत्पादक है । जन्य रागों का उत्पादक तो थाट ही माना जाएगा ।
उत्तर – भारतीय संगीत पद्धति में कुल दस आश्रय – राग माने गए हैं , जो निम्नांकित है :-
ज्ञात हो के थाटों की संख्या 10 है तथा इन 10 थाट के आश्रय राग भी वही होंगे ।
थाट – नाम | थाट के स्वर | आश्रय राग |
बिलावल | सा रे ग म प ध नि सां | बिलावल |
कल्याण ( यमन ) | सा रे ग मं प ध नि सां | यमन |
खमाज | सा रे ग म प ध नि सां | खमाज |
भैरव | सा रे ग म प ध नि सां | भैरव |
पूर्वी | सा रे ग मं प ध नि सां | पूर्वी |
मारवा | सा रे ग मं प ध नि सां | मारवा |
काफ़ी | सा रे ग म प ध नि सां | काफ़ी |
आसावरी | सा रे ग म प ध नि सां | आसावरी |
भैरवी | सा रे ग म प ध नि सां | भैरवी |
तोड़ी | सा रे ग मं प ध नि सां | तोड़ी |
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