राग क्या है ?

राग शब्द की व्युत्पत्ति ‘ रज ‘ धातु से हुई है। ध्वनि की यह विशिष्ट रचना, जिसे स्वर तथा वर्ण द्वारा सौन्दर्य प्राप्त हुआ हो और जो श्रोताओं को प्रसन्न करे, राग कहते हैं।

हर राग का अपना एक रूप, एक व्यक्तित्व होता है जो उसमें लगने वाले स्वरों और लय पर निर्भर करता है। 

पांच से कम स्वर का राग नहीं होता। 

1.

राग के लिए आवश्यक है कि कम से कम 5 स्वर, या 6 स्वर से लेकर 7 स्वर किसी भी राग में जरूर उपस्थित रहे।

2.

राग में रंजकता होना आवश्यक है ‌।

3.

कोई भी राग हो वह किसी न किसी ठाट से ही उत्पन्न होगा। जैसे :- राग भूपाली कल्याण थाट से।

4.

प्रत्येक राग में सा = षड़ज का होना अनिवार्य है।

5.

प्रत्येक राग में म= मध्यम और प = पंचम में से कम से कम एक स्वर अवश्य रहना चाहिए।

6.

प्रत्येक राग में समय, पकड़, वादी-संवादी, आरोह-अवरोह आवश्यक है ।

7.

एक ही स्वर के दो रूप एक साथ उपयोग वर्जित है जैसे कोमल रे, शुद्ध रे। परंतु आरोह-अवरोह में क्रमशः दोनों रूप का उपयोग होता है।

8.