उस्ताद अमीर खाँ जीवनी – उस्ताद अमीर खाँ का जन्म 15 अगस्त , 1912 को इन्दौर में एक संगीत परिवार में हुआ था । इनके पिता शाहमीर खान भिण्डी बाजार घराने के सारंगी वादक थे , जो होल्कर राजघराने , इन्दौर में बजाया करते थे जब वे केवल 9 वर्ष के थे तब उनकी माँ का देहान्त हो गया था । उन्होंने प्रारम्भिक शिक्षा अपने पिता शाहमीर खाँ से ली , जो इन्दौर दरबार में वीणा तथा सारंगी के विख्यात कलाकार थे ।
उस्ताद अमीर खाँ जीवनी संगीत में योगदान
उस्ताद अमीर खाँ ने उस समय के इन्दौर के उच्च कलाकारों से दीक्षा ग्रहण की , जिनमें उस्ताद अमान अली खाँ , जो उनके पिता के भी उस्ताद थे । उस्ताद रजब अली खाँ और उस्ताद अब्दुल वहीद खाँ की गायकी से भी उन्होंने बहुत कुछ सीखा ।
खाँ साहब की मृत्यु कलकत्ता में वर्ष 1974 में एक सड़क दुर्घटना में हो गई ।
संगीत में योगदान
- अमीर खाँ साहब एक उच्चकोटि के कण्ठ सिद्ध गायक थे और वे गायक के अतिरिक्त भी बहुत कुछ थे । इन्होंने गीत भी लिखे , नए राग भी बनाए और एक नई गायन शैली की नींव डालकर इन्दौर घराना नामक एक नए घराने की स्थापना भी की ।
- • अमीर खाँ साहब मानते थे कि ख्याल में काव्य तत्त्व का उतना ही महत्त्व है । जितना कि राग ( स्वर – समीष्ट ) तत्त्व का । खाँ साहब का गायन ‘ अति विलम्बित ख्याल ‘ एक ताल गायन का प्रतीक था , जिसे उन्होंने बड़े चिन्तन मनन से विकसित किया ।
- • खाँ साहब की आलाप में स्वरों की बढ़त एक विशेष प्रकार की थी , जिसे ‘ खण्डमेरु पद्धति ‘ कहते हैं । खण्डमेरु या मेरुखण्ड प्रणाली और उसमें चयन की प्रक्रिया व संगीत शिक्षा के विषय पर खाँ साहब के विचार हैं कि स्वर ज्ञान और रियाज के लिए आरोह – अवरोह का अभ्यास प्रथम चरण में है । हमारे यहाँ 360 अलंकार हैं और खण्डमेरु के 5040 खण्ड हैं , इन्हें कण्ठस्थ करना असम्भव नहीं , परन्तु कठिन अवश्य है । अतः इन्हें मिलाकर 168 स्वर लय तैयार किए हैं ।
- • खाँ साहब को विलम्बित झूमरा लय बहुत पसन्द थी । वे सीधा – सादा लयकार ठेका ही पसन्द करते थे । उन्होंने अपनी कला प्रवीणता का प्रदर्शन सिर्फ प्रदर्शन करने के लिए नहीं किया , बल्कि अपने राग की मूल भावना पर अपने को केन्द्रित रखा ।
- गायन शैली की ख्याल गायिकी के क्षेत्र में उनका महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है । खाँ साहब कभी – कभी तराना भी गाते थे । तराना की गायन शैली के सम्बन्ध में उनका मानना था कि अपने मौलिक रूप में तराना अध्यात्मवाद से परिपूर्ण होता है और अपनी बन्दिश के माध्यम से गायक ईश्वर से तादात्म्य स्थापित करने का प्रयास करता है ।
- उस्ताद अमीर खाँ साहब के अनुसार नादिर दानी का अर्थ है तू सबसे अधिक जानता है , तनदरहानि का अर्थ है तन के अन्दर को जानने वाला , दरा का अर्थ है अन्दर आ , तनन्दरा का अर्थ है तन के अन्दर आ अर्थात् मैं तेरा हूँ।
- ‘ अला अलीहला अली , अललूम ‘ आदि शब्द खुदा के नाम हैं और ये सब तराने में ईश्वरोपासना के लिए कहे गए हैं ।
- • वास्तव में उस्ताद अमीर खाँ की गायन पद्धति उनकी साधना का फल था । धीर , गम्भीर मर्यादामय एवं सुव्यवस्थित उनका गायन था , जिसमें आनन्द था , तल्लीनता थी तथा समाधि की ओर अग्रसर होने का भाव था। मारवा , दरबारी , कान्हड़ा , मेघ , लसित , आभोगी , वैरागी जैसे रागों की प्रस्तुति में जिस प्रकार की भव्यता और भाव मिलता है , वह आज के गायकों के लिए पथ – प्रदर्शक है । उन्होंने एक नया राग ‘ चन्द्रमधु ‘ बनाया था।
- उस्ताद अमीर खाँ ने कुछ फिल्मों में भी गायन का काम किया था , जिनमें ‘ बैजू बावरा ‘ , ‘ शबाब ‘ , ‘ रागिनी ‘ , ‘ गूँज उठी शहनाई ‘ आदि फिल्में थीं ।
उस्ताद अमीर खाँ साहब को वर्ष 1967 में संगीत नाटक अकादमी का राष्ट्रपति द्वारा पुरस्कार मिला तथा वर्ष 1971 में इन्हें पद्मभूषण अलंकरण से सम्मानित किया गया तथा वर्ष 1971 में ही उन्हें सुर – सिंगार संसद से ‘ स्वर विलास ‘ प्रदान किया गया ।
अब्दुल हलीम जफर खाँ ( सितार ) Abdul Halim Jaffer Khan in Hindi
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