सेनिया घराना ( सितार ) – तन्त्री वाद्यों के परम्परागत घरानों का विकास उन्नीसवीं सदी के पूर्वार्द्ध में ही प्रारम्भ हुआ था । उस समय तक वीणा तथा रबाब आदि के परम्परा युक्त घरानेदार वादकों के लिए सितार नया नहीं था । अतः गायन के घरानों के समान सितार के घरानों की नींव परम्परागत पुराने घरानों में नहीं मिलती , घराने अवश्य निर्मित हुए पर इस समय जो सितार वादन प्रचलित है , उसमें व्यक्तिगत प्रतिभा की ही प्रधानता है और बहुत हद तक उसमें वीणा और रबाब की वाद्य शैली का परित्याग है ।
तन्त्री वाद्य के घराने
आज एक अच्छा वादक उन सभी शैलियों का गुण अपने वादन में भरने का प्रयास करता है , जिससे श्रोता आनन्दित हो और उसके वादन की प्रशंसा करे और इस दृष्टि से घराने की परम्परा टूटती जा रही है । इसी कारण सितार के घरानों के समक्ष एक प्रश्न चिह्न लग गया तथा सितार के घराने सही दृष्टि से अभी तक विकसित नहीं हुए हैं । उनमें से कुछ सारगा , रबाब या सरोद वादक भी थे ।
अतः सितार वादन घरानेदारी के क्रम में तो आता नहीं है , फिर भी सितार के जो घराने स्थूल रूप से जाने जाते हैं , वो निम्नलिखित हैं –
- सेनिया घराना ( सितार )
- रामपुर घराना ( सितार )
सेनिया घराना ( सितार )
- सेनिया घराना ( सितार ) . अकबर के नवरत्नों में से तानसेन एक थे । अकबर ने तानसेन की कला – कौशल से प्रभावित होकर इन्हें ‘ कण्ठाभरण बानी विलास ‘ की उपाधि प्रदान की थी । तानसेन परम्परा से सम्बन्धित लोग ‘ सेनिया ‘ कहलाते हैं ।
- • इनकी परम्परा में लखनऊ के प्यार खाँ और जाफर खाँ प्रसिद्ध रबाविए थे । तानसेन को ही सेनिया घराने का आदि पुरुष माना जाता है । इसी परम्परा में मसीतखानी शैली के आविष्कारक व सितार वादक मसीत खाँ हुए हैं ।
- वाद्य संगीत में वादन शैली को बाज कहा जाता है तथा इन शैलियों में परिवर्तन होने से विभिन्न बाजों का निर्माण होता है । सितार वादन के क्षेत्र में भी इसी प्रकार पीढ़ी – दर – पीढ़ी वादन शैली में अन्तर आने से विभिन्न शैलियों का निर्माण हुआ , इनमें प्रमुख हैं ; जैसे – सेनिया बाज , जयपुरी बाज , मसीतखानी बाज , रजाखानी बाज तथा पूर्वी बाज , इमदादखानी बाज । भारतीय संगीत में सितार वादन का एक सेनिया घराना ही माना जाता है । कहा जाता है कि तानसेन की मृत्यु के बाद इनके वंशज दो भागों में बँट गए , जिन्होंने अलग – अलग शैलियों का विकास किया । इन्हें बीनकार और बाबिए कहा गया ।
- तानसेन की वंश परम्परा और शिष्य परम्परा इतनी विशाल व समृद्धशाली है कि बहुत से गायन और वादन के घरानों का सम्बन्ध अपने आप ही इनसे जुड़ जाता है । इनके वंशजों में सुरत सेन , तानतरंग , सुहेल सेन , बिलास खाँ , सुधीर सेन हैं । संगीत सुदर्शन ‘ में तानसेन और उनके ज्येष्ठ पुत्र तानतरंग की वंशावली सितार वादक अमृत सेन तक इस प्रकार हैं- तानसेन तानतरंग खाँ , सूरज सेन , सुफल सेन , झण्डे सेन , सुभाग सेन , बाल सेन , रूप सेन , लाल सेन , फाजिल सेन , मुराद सेन , सख सेन . रहीम सेन तथा अमृत सेन आदि । इसी घराने के अन्तर्गत रामपुर । के उमराव खाँ खण्डारे , उनके पुत्र रहीम खाँ तथा अमीर खाँ और इनके पुत्र वजीर खाँ आदि कलाकार उत्तम बीनकार थे । लखनऊ के प्यार खा और जफर खाँ प्रसिद्ध रबाबिए तथा मसीतखाँ सितारवादक थे । जयपुर के अमृत हुसैन और ग्वालियर के महाराज माधवराज सिन्धिया के गुरु अमीर खाँ इस घराने के उत्तम सितार वादक थे ।
- • मुहम्मद शाह रंगीला के दरबारी गायक नियामत खाँ थे , इन्हें सितार पर बजाने वाली गत का प्रथम रचनाकार कहा जाता है । इनके बाद इनके छोटे भाई के पुत्र फिरोज खाँ का नाम सितार की गतों के निर्माण के लिए उल्लेखनीय है , इन्होंने बहुत – सी गतों की रचना की , जिन्हें फिरोजखानी गतों के नाम से जाना गया । फिर इनके पुत्र मसीत खाँ हुए , जिन्होंने अपनी विशेष सितार की गतों को मसीतखानी गत नाम दिया । सेनिया घराने के सितार और सुरबहार वादक उस्ताद मुशताक अली खाँ आधुनिक युग के प्रसिद्ध संगीतज्ञ हैं ।
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सेनिया घराने के वादन शैली की विशेषताएँ
सेनिया घराने वादन शैली की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –
- विद्वानों के अनुसार , सितार में गत विस्तार तथा आलाप के लिए ध्रुपद की चार बानियों में से गोउहार , डांगुर तथा खण्डार बानी का बहुत प्रभाव पड़ा ।
- सितारवादन में जोड़ का भाग खण्डार बानी का अनुसरण ही प्रतीत होता है ।
- तत्कालीन वादक जोड़ वादन में छन्दबद्ध रूप का वादन किया करते थे तथा लड़ी अंग व तारपरन की सहायता से स्वर विस्तार करते थे ।
- सितार वादन की इस वादन शैली में वादकों ने आलाप एवं जोड़ आलाप के बाद ध्रुपद के आधार पर विभिन्न गतों के निर्माण की शुरुआत की ।
- 18 वीं शताब्दी के सितार का बाज वास्तव में वीणा वादन काही अनुसरण है ।
- यह बाज सीधा , सरल व मध्य लय तथा तीनताल में निबद्ध सरल राग विस्तार तथा अन्त में जोड़ के काम से युक्त होता था , इसमें अधिक क्लिष्ट तानों का प्रयोग नहीं किया जाता था तथा इसमें बोल बाँट का काम अधिक दिखाया जाता था ।
- सेनियों ने 12 प्रकार की वादन क्रियाओं ; जैसे – जोड़ आलाप , झाला , आलाप , ठोंक झाला , गत , लड़ी , तोड़ा , लड़ गुँथाव , गुँथाव , लड़ लपेट , तारपरन और कत्तर आदि को सेनिया बाज की वादन शैली में प्रयोग किया तथा यही इस घराने के सितार वादन का अभिन्न अंग बने ।
रामपुर घराना ( सितार ) Rampur Gharana in Hindi