राग मियाँ मल्हार parichay in Hindi, श्लोक –
ग स्वर कोमल सप सम्वाद , उतरत धैवत वर्ज्य ।
दोउ निषाद रूप साजत , मिया मल्हार का अर्ज ।।
संक्षिप्त विवरण –
- राग मियाँ मल्हार की उत्पत्ति काफी थाट से मानी गई है ।
- इसके आरोह में सातों स्वर प्रयोग किये जाते हैं तथा अवरोह में धैवत वर्ज्य है ।
- इसलिये इसकी जाति सम्पूर्ण – षाडव है ।
- इसमें गंधार कोमल तथा दोनों निषाद प्रयुक्त होते हैं ।
- गायन समय मध्य रात्रि है ।
- वादी सा और सम्वादी प है ।
- कुछ गुणी व्यक्ति म को वादी और सा को सम्वादी मानते हैं ।
आरोह- सा मरे ऽ प मग ऽ ग म रे सा , म रे प , नि ऽ ध नि ऽ सां ।
अवरोह – सां नि प म प , ग म रे सा ।
पकड़- म रे प , म ग ऽ ग म रे सा , नि नि ऽ ध नि ऽ सा ।
विषय - सूची
विशेषता –
- कहा जाता है कि तानसेन ने एक नये राग ” मल्हार ” को रचा था जो बाद में मिया मल्हार अथवा मियाँ की मल्हार कहलाने लगा । प्राचीन ग्रन्थों में इसका उल्लेख नहीं मिलता है ।
- यद्यपि मल्हार के कई प्रकार प्रचलित हैं , जैसे – सूर मल्हार , गौड़ मल्हार , नट मल्हार , रामदासी मल्हार इत्यादि , किन्तु बोलचाल में मल्हार से केवल मिया मल्हार का ही बोध होता है । स्व ० कृष्ण राव शंकर पंडित तथा विनायक राव पटवर्धन के मतानुसार मल्हार से केवल मियाँ मल्हार समझना चाहिये । कुछ विद्वान इसका खंडन करते हैं उनका कहना है कि केवल मल्हार कोई राग नहीं है । मल्हार से मियॉ मल्हार ही क्यों समझा जाय जब की मल्हार के अनेक प्रकार प्रचलित हैं ।
- राग – विवरण के अंतर्गत केवल यही कह दिया गया है कि . इसमें कोमल गंधार प्रयुक्त होता है , लेकिन केवल इतना कहना पर्याप्त नहीं है । इसका कोमल गंधार दरबारी काहड़ा के कोमल ग के समान आंदोलित होता है , किन्तु फिर भी दोनों रागों के गंधार में बहुत अन्तर है । मियॉ मल्हार में गंधार , मध्यम को स्पर्श करते हुये आंदोलित होता है और दरबारी का गंधार ऋषभ को स्पर्श करते हुये आंदोलित होता है ।
- दोनों निषादों का पास – पास प्रयोग मियॉ मल्हार की निजी विशेषता है जैसे – म प नि ऽ ध नि ऽ सां । यह प्रयोग कर्णप्रिय लगता है । कभी – कभी दोनों निषाद एक साथ भी प्रयोग किये जाते हैं ।
- इसकी जाति तो आरोह में सम्पूर्ण मानी गई है , किन्तु गंधार वक्र प्रयुक्त होता है । सच पूछा जाय तो यह नहीं कहा जा सकता है कि आरोह में गंधार का प्रयोग होता है अथवा नहीं । भातखंडे जी ने आरोह का स्वरूप बताते समय आरोह में गंधार का प्रयोग किया ही नहीं है। यद्यपि आरोह को संपूर्ण बताया है । वास्तव में गंधार वक्र प्रयोग किया जाता है । आरोह में कभी भी सा रे ग म प , इस प्रकार प्रयोग नहीं होता । कभी – कभी अवरोह में ध वक्र प्रयोग किया जाता है , जैसे – सा ,ध नि म प ।
- वर्षाकाल में इसे किसी भी समय गा – बजा सकते हैं , इसलिये इसे मौसमी राग भी कहते हैं । मियाँ मल्हार के गीतों में अधिकतर पावस ऋतु का वर्णन मिलता है ।
मतभेद –
मिया मल्हार के वादी – सम्वादी में विद्वानों में थोड़ा मतभेद है । म – सा के स्थान पर सा – प को वादी – संवादी मानना अधिक न्यायसंगत प्रतीत होता है । कारण , इस राग में म पर कभी भी न्यास नहीं होता । वादी स्वर पर न्यास किया जाना आवश्यक है । दूसरी ओर सा – प स्वर इस राग में बहुत महत्वपूर्ण हैं । यह पूर्वांग प्रधान राग है , अतः इसमें वादी स्वर सप्तक के पूर्व अंग ( सा , रे , ग , म , प ) से लिया जाना चाहिये ।
- न्यास के स्वर- सा , रे , प और नि ।
- मियाँ मल्हार– सा , मरे प मग मग म रे सा नि ऽ ध नि ऽ सा ।
- निकटस्थ राग– बहार
- बहार – सा म , म प ग म , नि ध नि सां ।
विशेष स्वर संगतियाँ —
- म प नि ऽ ऽ ध नि ऽ सां
- सा म रे प
- नि ऽ ऽ ध नि ऽ ऽ सां , ध नि म प
- धनिसां ऽ नि प , म ग ऽ ग म ऽ रे सा , नि ऽ ऽ ध नि ऽ सा
स्वरों का अध्ययन –
- सा – सामान्य
- रे – दोनों प्रकार का बहुत्व ।
- ग – आरोह में लंघन अल्पत्व , किन्तु विशिष्ट स्थान पर अनाभ्यास बहुत्व और अवरोह में अलंघन बहुत्त्व ।
- म – अलंघन बहुत्व ।
- प – दोनों प्रकार का बहुत्व ( अलंघन और अभ्यास दोनों ) ।
- ध – आरोह में अलंघन बहुत्व और अवरोह में लंघन अल्पत्व ।
- नि – दोनों प्रकार का बहुत्व ।
राग मियाँ मल्हार आलाप
1. सा , निसा , रे सा , ध नि ऽ ध नि ऽ ध नि ऽ सा , निसारेसा नि नि ऽ ऽ ध नि म प ( नि ) ऽ ध नि ऽ सा , रे सा ।
2. ( सा ) ध नि म प , म प ( नि ) ध ( सा ) नि नि ऽ ध नि ऽ सा निसा ऽ ध नि म प नि ऽ ध ऽ सा ऽ नि सा ऽ रे सा ।
3. सा मरे ऽ रे प ऽ प , मग ऽ ग मग ( म ) रे सा , प ऽ प मग मग म रे सा , ममरेसा नि ऽ ध नि ऽ सा ऽ सा, ध नि म प म प ध नि ऽ ध नि सा ।
4. सा . म रे रे प ऽ प मग ग ऽ ग ( म ) रे सा , नि ऽ ध नि ऽ सा निसा निसा , मरे प , प , प ( नि ) ध सा ऽ ऽ नि मरे प , मग ऽ मग ऽ ( म ) रे प , प मग ऽ मग ( म ) रे सा ।
5. मरे प ऽ प , म प , प नि ऽ ध नि म प , सा मरे मरे प ऽ प , नि म प , म प ध नि ऽ ऽ ध नि ऽ ऽ ध नि म प , म प नि ऽ ध नि ऽ सां ऽ ध नि म प , नि म प मग मग ( म ) रे सा नि नि ऽ ध नि ऽ सा ।
6. म प धनि ऽ ऽ ध नि ऽ ऽ सां ऽ ऽ सां ऽ ऽ रे नि सां . ध नि म प , म प धनि ऽ ध नि ऽ सां , गं मं रें सां , मंरे मंप ऽ पं मग मग ( म ) रे सां, सा मग मग ( म ) रे सा . रें सा, ध नि म प , मपधनिसां ऽ नि प मग मग ( म ) रे सा , नि ऽ ध नि ऽ सा ।
तानें
1. मम रेसा , निसा मम रेसा , पप मप गम रेसा , निसा रेप मप गम रेसा , निसा रेरे साप पम पग मरे सानि सा , मप निम पग मरे सानि धनि सांनि पन पग मरे सा ।
2. मप निध निसां रेंसां निप मप , रेंसां निसा निध निसां निप मप , मप मनि धसां निरें सारे निसां धनि मप गम रेसा निध निसा रेरे सासा ।
3. पनि धनि सारे निसां रेप मप गम रेसा , मनि धनि पध मप सारे निसां धनि मप , मप मनि धनि मप , धनि धरें सारें निसां , धनि मप गम रेसा ।
4. मम रेमम रेसा निध निसा निनि पनिनि पनिनि सपगम रेसा निध निसा , रेरे सारे सांनि पनिनि पनिनि मप निप मप गम रेसा , रेपप रेपप मप गम रेसा निध निसा ।
5 रेंसां निसां निध निसां रेंसां निसां निध निसां , मप निसा रेंसां निसां रेंसां निसां निध निसां , साम रेप मनि धसां रेंसां निसां निध निसां , सामं रेपं गंमं रेंसां निध निसां रेंसां निप मप , साम रेच गम रेसा ।
राग बहार – परिचय, आलाप, तानें , विवरण, विशेषता
राग बहार और मियाँ मल्हार की तुलना Comparison
राग बहार और मियाँ मल्हार में समता या समानता –
1. दोनों राग यवन कालीन हैं । प्राचीन ग्रन्थों में इनमें से किसी का वर्णन नहीं मिलता है ।
2. दोनों काफी थाट जन्य राग हैं ।
3. दोनों में ग कोमल तथा दोनों निषाद प्रयोग किये जाते hain .
4. दोनों के आरोह में ध वर्जित है तथा अवरोह पाडव जाति का है ।
5. दोनों राग ऋतुकालीन हैं । राग बहार वसंत ऋतु में और मियाँ मल्हार वर्षा ऋतु में हर समय गाया – बजाया जाता है ।
6. दोनों का गायन – समय मध्य रात्रि माना जाता है ।
7. राग बहार में म वादी और सा संवादी सर्वसम्मति से माना जाता है । मियाँ मल्हार में भी कुछ विद्वान म – सा को वादी – संवादी मानते हैं ।
8. दोनों के अवरोह में गन्धार रवर वक्र है ।
9 , दोनों रागों में निम्नलिखित स्वर – समुदाय प्रयोग किये जाते हैं । ( अ ) ग म रे सा . ( ब ) नि ध नि सां ( स ) नि प ,
विभिन्नता Difference (राग बहार और मियाँ मल्हार)
1. बहार चंचल प्रकृति का तथा मियाँ मल्हार गभीर प्रकृति का राग है ।
2. बहार अधिकतर मध्य और तार सप्तकों में गाया जाता है , किन्तु मियाँ मल्हार तीनों सप्तकों में गाया जाता है , विशेषकर मंद्र और मध्य सप्तकों में ।
3. राग बहार का आरोह षाडव जाति का और मिया मल्हार का आरोह सम्पूर्ण जाति का है ।
4. यद्यपि दोनों रागों में कोमल गन्धार प्रयुक्त होता है , फिर भी दोनों में लगाने का ढंग एक दूसरे से भिन्न है । मिया मल्हार का गंधार कोमल तथा म को स्पर्श करते हुये आंदोलित होता रहता है , किंतु बहार का गंधार ठीक कोमल होता है तथा आंदोलित नहीं होता ।
5. नि ध नि सां , स्वर – समूह को प्रयोग करने का ढंग दोनों रागों को एक दूसरे से अलग कर देता है । राग बहार में इस स्वर – समुदाय के प्रत्येक स्वर पर बराबर – बराबर ठहराव रहता है , किन्तु मियाँ मल्हार में ऐसा नहीं होता , बल्कि दोनों निषादों को बढ़ाते हैं उदाहरणार्थ निऽध निऽऽ सां , से मल्हार और नि ध नि सां , से बहार राग का बोध होता है । दूसरे , बहार राग गाते समय नि ध नि सां का प्रयोग कभी भी मंद्र सप्तक में नहीं होता , किन्तु इसी स्वर – समुदाय को मन्द्र सप्तक में गम्भीरता के साथ प्रयोग करने से मियाँ मल्हार का बोध होता है ।
6. बहार में सा म और मियाँ मल्हार में रे प की संगति राग – वाचक है । उदाहरण के लिये दोनों का आलाप देखिये ।
7. राग बहार में म वादी और सा सम्वादी और मियाँ मल्हार में अधिकांश विद्वानों द्वारा सा वादी और प सम्वादी माना जाता है ।
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