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घराना का विकास (अध्ययन )- Gharana ka Vikash

घराना का विकास

घराना परंपरा का विकास – घरानों का विकास का प्रश्न आते ही मस्तिष्क में एक प्रकार की लहर का संचार होने लगता है , जिसमें अनेक प्रकार के प्रश्नों का प्रवाह दिखाई देता है । यदि मानव के प्रारम्भिक जीवन पर दृष्टि डालें , तो यह स्पष्ट परिलक्षित होता है कि जीवन के उस प्रारम्भिक स्तर पर संगीत का विकास मनमाने ढंग से हुआ करता था ।

घराना परंपरा का विकास

घराना संगीत का विकास – अर्थात् संगीत के लिए न ही कोई नियम होता था और न ही कोई बन्धन , बस स्वतन्त्रता ही स्वतन्त्रता होती थी । इस स्वतन्त्रता का उद्देश्य केवल स्वयं का मनोरंजन करना था । धीरे – धीरे समय की गति परिवर्तित होती चली गई , अनेक प्रकार की भाषाओं व वर्गों के रूप में संगीत का विकास होने लगा ।

• यह सर्वविदित है कि गायन की शैली की बात करें तो सामवेद में एक हजार शैलियाँ प्रचलित थीं , परन्तु पश्चातवर्ती समय में केवल पन्द्रह शाखाएँ ही प्रचलित रह गईं और अन्तत : जो तीन शाखाएँ प्रचलित हुई , वे थीं- रानायनी , जैमिनी व कौथुमी ।

• वास्तव में मनुष्य का कुल दो प्रकार , एक जन्म से और दूसरा शिक्षा पद्धति से चलता है । एक परिवार में जन्म लेने वाले सभी व्यक्तियों का एक परिवार या घर होता है , उसी प्रकार एक गुरु से शिक्षा ग्रहण करने वाले सभी शिष्यों की एक परम्परा या शैली होती है , जिनसे गुरु – शिष्य के सम्बन्ध में पुष्टि होती है ।

“ यथा तद् विद्धि प्राणिपातेन परिप्रश्नैन सेवया ।
उपदेक्ष्यति ते ज्ञानं ज्ञानित सतत्वदर्शिनः ।। ”

मुण्डकोपनिषद् के अनुसार ,

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” तस्मै स विद्वानुपसन्नाय सम्यक् प्रशान्तचित्ताय शमन्विताय ।
येनाक्षरं पुरुषंवेद सत्यं प्रोवाचतां तत्त्वतो ब्रह्माविद्याम् । ”

• स्वर का संगीत मूलक अर्थ ब्राह्मण काल में ही विकसित हो चुका था । अतः सामगान का अत्यन्त व्यवस्थित रूप व विविध विधानों के प्रसार के रे – धीरे प्रशिक्षण केन्द्रों के रूप में गुरुकुल या गुरु आश्रमों परिणामस्वरूप का निर्माण होने लगा । इन आश्रमों में साम का प्रशिक्षण मौखिक रूप में ही दिया जाने लगा था , जिसके परिणामस्वरूप वेद को ‘ अनुश्रव ‘ भी कहा गया ।
गुरुमुखादनुश्रुयतेइत्यनुश्रवोवेद ।

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घराना परंपरा का अध्ययन

घरानों के प्रारम्भ में अध्ययन करने से ज्ञात होता है कि घराना 18 वीं या 19 वीं शताब्दी के आस – पास की देन है । प्रायः ऐसे मत सामने आते हैं कि गुरु – शिष्य ही दरबारों से सम्बद्ध होने पर ‘ घराना ‘ नाम से प्रचलित हुए , इसके अनुसार राजपूत काल में राज दरबारों में अनेक संगीतज्ञों को राजाश्रय प्राप्त होने के कारण घरानों की नींव मानी जा सकती है ।
18 वीं सदी तक आते – आते गुरु – शिष्य परम्परा ने संस्थागत रूप घराना शब्द को प्रचलित किया । उमेश जोशी ने अपनी पुस्तक उत्तर भारतीय संगीत के इतिहास में मध्य युग में घरानों की चर्चा की है । उनका मानना था कि अमीर खुसरो , हरिदास , मियाँ तानसेन ने उच्चारण , स्वर , प्रयोग , ताल , भाव पक्ष तथा गायन के विभिन्न पक्षों पर बल दिया , जो आगे चलकर घरानों के रूप में परिवर्तित हो गया 

घराना परम्परा की उपादेयता / Usability

घराना परम्परा की उपादेयता संगीत जगत् के द्वारा जनमानस को एक ऐसी अमूल्य निधि की प्राप्ति हुई है , जिसका वर्णन करना मुश्किल तो है , परन्तु आवश्यक भी बहुत है , वह है घराना परम्परा की उपादेयता । इसकी उपादेयता से पूर्व हमें यह जानना अति आवश्यक हो जाता है कि घराना परम्परा किसे कहते हैं ?

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घराना परम्परा का अर्थ ?

कुछ विद्वानों के मतानुसार ‘ घर ‘ या ‘ घराना ‘ शब्द का तात्पर्य गायकों के ऐसे वर्ग से है , जिन्होंने पिता – पुत्र परम्परा से या गुरु – शिष्य परम्परा से गुरु की गायन शैली को अपनाया । श्रीकृष्ण राव पण्डित जी के अनुसार , “ विभिन्न शैलियों के निर्माताओं ने अपनी प्रतिभा तथा कठिन साधना से एक विशिष्ट शैली का निर्माण किया , जो लोकप्रिय हुई तथा उनके शिष्यों द्वारा उसका प्रचार प्रचुर मात्रा में किया गया । इस शैली को ‘ घराना ‘ कहते हैं ।

संगीत में घराना किसे कहते हैं ?

” वह परम्परा घराना कहलाती है , जिसे कठिन साधना , स्व – प्रतिभा व विशिष्ट गायिकी द्वारा निर्मित शैली को शिष्यों द्वारा व पीढ़ियों द्वारा अग्रसर करके , उसको लम्बे समय तक संरक्षित कर प्रचारित किया जाता है । यही प्रक्रिया रूपी परम्परा ‘ घराना ‘ कहलाती है ।

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घराने की उत्पत्ति के कारण क्या हैं ?

घराने की उत्पत्ति का एक मुख्य कारण हिन्दू व मुस्लिम सम्प्रदायों के मध्य पनपी व उपजी स्वार्थता भी रही , जिसने घरानों को जन्म देने में अपनी अहम भूमिका निभाई । इन निर्मित विभिन्न घरानों के द्वारा एक नई सांगीतिक शिक्षा का पहलू सामने आया , जिसने शब्दों के प्रामाण्य की अपेक्षा स्वरों के प्रामाण्य पर अधिक बल दिया । घराने की उत्पत्ति कैसे हुई ? Gharana

घराना परम्परा की भूमिका क्या है ?

इस घराना परम्परा ने गुरु – शिष्य परम्परा को अधिक सशक्त व सुदृढ़ बनाया जिसके परिणामस्वरूप गुरु – शिष्य परम्परा की यथार्थता का प्रमाण उपलब्ध हुआ । साथ ही घराने की इस परम्पराबद्धता को ‘ कुल ‘ या ‘ वंश कहा जाने लगा । इस परम्परा का सम्बन्ध केवल संगीत से ही नहीं अपितु मनुष्य के दैनिक जीवन से भी है । यदि इस दृष्टि डाली जाए , तो यह तथ्य सामने आता है कि हमारी सांस्कृतिक , सामाजिक परम्परा को दृढ़ रखने व समाज की विकासधारा को आगे बढ़ाने में इस घराना – परम्परा ने अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया है ।

घराना परम्परा की उपादेयता किसे कहा जाए ?

• इसके अन्तर्गत अग्रसित होने वाले सांगीतिक ज्ञान का लाभ आज संगीत जगत् से जुड़ा प्रत्येक व्यक्ति उठा रहा है । यह वह लाभ है , जिसे हम घराने परम्परा के द्वारा विरासत में मिली उपादेयता कहें , तो यह कोई अतिशयोक्ति न होगी । यह घराना परम्परा मनुष्य को अनुशासित , संयमी व पूर्वजों के प्रति श्रद्धा रखने की शिक्षा देने में अति महत्त्वपूर्ण सिद्ध हुई है , जिसका प्रत्यक्ष प्रमाण आज हमारे सम्मुख संगीत जगत् का परिवर्तित व उन्नत रूप है ।
इस घराने परम्परा को सुशोभित करने वाली मण्डली , गुरुओं , परम्पराओं एवं शिक्षा आदि को घराने परम्परा की उपादेयता ही कहा जाएगा , जिसका वर्णन कर पाना स्वयं में अवर्णनीय है । घराने शब्द के साथ जुड़े शब्द परम्परा के नाममात्र से ही इसकी उपादेयता व्यक्त होती है तथा इसकी विशेषताएँ व विशिष्टताएँ परिलक्षित होती हैं ।

घराना परम्परा विकास का श्रेय किसे जाता है ?

 सर्वाधिक बुजुर्ग तथा अकादमी अवार्ड प्राप्त करने वाले गायक मुश्ताक हुसैन खाँ जी ने प्रो . देवधर जी से कहा था कि “ विद्या एक घराने में नहीं मिलती , यदि अलग रंग चाहिए हो तो , अलग – अलग गुरुओं से सीखना आवश्यक होता है । ’’ इस बात से यह साबित होता है कि घरानों के विकास व परम्परा के माध्यम से जनमानस को कई विशेषताओं से युक्त घराने तो मिले ही हैं , साथ में अपनी – अपनी विलक्षण प्रतिभा रखने वाले महान् व धुरन्धर संगीतज्ञों की भी प्राप्ति हुई है , जिसका सम्पूर्ण श्रेय घराना परम्परा का विकास को जाता है ।

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घराने की उत्पत्ति के कारण

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