Site icon सप्त स्वर ज्ञान

Sangeet Raj by maharana Kumbha in hindi महाराणा कुंभा द्वारा रचित संगीत राज

sangeet raj by Maharana kumbha

Sangeet Raj by maharana Kumbha – मेवाड़ के प्रसिद्ध विजयी महाराणा कुंभकरण या कुंभा द्वारा संगीत राज नामक ग्रंथ लिखा गया। कुंभा ने लगभग 1480 ईस्वी में इसे लिखा। साहित्य का कीर्ति स्तंभ माना जाता है, कुंभा रचित महान रचना ‘ संगीत राज ‘ । 

इस ग्रंथ में 5 अध्याय हैं। प्रत्येक अध्याय में 4 प्रकरण और प्रत्येक प्रकरण में चार परिच्छेद हैं। 16,17 श्लोकों में यह ग्रंथ पूर्ण हुआ है।

ग्रंथकार ने विषय विभाजन इत्यादि में शारंगदेव (“संगीत रत्नाकर”) का अनुकरण किया है। तथा अभिनव गुप्ता, विप्रदास, अशोक, देवेंद्र, मदन एवं पंडित – मंडली का प्रभाव भी उन पर है।

ग्रंथ में रागों के ध्यान के साथ भरत , मतंग एवं अभिनव गुप्त सिद्धांतों पर देशी संगीत की कुछ विशेष प्रवृत्तियों पर भी चर्चा की गई है। महाराणा कुम्भा द्वारा रचित पुस्तक / ग्रन्थ ” संगीत राज ” Sangeet Raj by Maharana Kumbha

“संगीत रत्नाकर” ग्रंथ के 5 अध्याय / कोषों  की संख्या

महाराणा कुंभा रचित ग्रंथ संगीत राज कितने कोषों  में विभाजित है ?

1. पाठ्य रत्न कोष
2. गीत रत्न कोष
3. वाद्य रत्न कोष
4. नृत्य रत्न कोष
5. रस रत्न कोष

संगीत राज किसकी रचना है?

मेवाड़ के प्रसिद्ध विजयी महाराणा कुंभकरण या कुंभा द्वारा ” संगीत राज ” नामक ग्रंथ लिखा गया।

Advertisement
संगीत का सबसे बड़ा ग्रन्थ कौन सा है ?

“संगीत रत्नाकर” से बड़ा ग्रंथ “संगीत राज” कुंभा द्वारा रचित है। जो संगीत रत्नाकर के 300 वर्ष बाद लिखा गया। जो बाते संगीत रत्नाकर में बताई गई वही बात संगीत राज में दोहराई गई है और विस्तृत करके कहीं गई है।

कुंभा का संगीत गुरु कौन था?

राणा कुम्भा के गुरु का नाम ” जैनाचार्य हीरानन्द ” था ।

Advertisement
Advertisement

ग्रंथ का महत्व ( Sangeet Raj by maharana Kumbha)

ग्रंथ का महत्व – 15 वीं शताब्दी में यह ग्रन्थ लिखा गया, परंतु बातें प्राचीन है। यह प्राचीन संगीत के बारे में वर्णन करने वाला सबसे विस्तृत ग्रंथ है। इतना अधिक वर्णन किसी ग्रंथ में नहीं मिलता है।

कुंभा ने 12 स्वर वाली मूर्छना का खंडन किया है। ग्राम देशी राग को वर्गीकृत किया है।

Advertisement

ध्यान की परंपरा, राग रागिनी से ग्रहण की और देशी से जोड़ दिया है। इस ग्रंथ में भरतभाष्य के समान अनेक प्राचीन आचार्यों के मत प्राप्त होते हैं जिनके अपने कोई ग्रंथ नहीं है।

श्लोक की संख्या -इसमें श्लोकों की संख्या 700 श्लोक हैं। प्राचीन परंपरा का अंतिम प्रतिनिधि ग्रंथ है। साहित्यिक दृष्टि से अन्य ग्रंथों की अपेक्षा यह क्लिष्ट / कठिन है।

Advertisement

काशी हिंदू विश्वविद्यालय वाराणसी से पाठ्य व गीत रत्नकोष प्रकाशित हुआ है, एवं राजस्थान प्राच्य विद्या जोधपुर से नृत्य रत्न कोष प्रकाशित हुआ है । 

Advertisement
Advertisement
Share the Knowledge
Exit mobile version