विषय - सूची
Amir Khusro Biography
Amir Khusro Biography – अमीर खुसरो का जन्म 1253 ईस्वी में उत्तर प्रदेश के एटा जिले में स्थित पटियाली नामक ग्राम ग्राम में हुआ था । इनके पिता का नाम सैफुद्दीन मोहम्मद था जो कि लाचीन निवासी तुर्क थे। यह सुल्तान शमसुद्दीन इल्तुतमिश और उनके उसके उत्तराधिकारीयों के समय उच्च पदों पर नियुक्त रहे । इनकी मां ब्रजवासी महिला थी। इनकी मातृभाषा हिंदी थी । 1264 ईस्वी में इनके पिता एक युद्ध में मारे गए। इस कारण इनका लालन-पालन अपने नाना के संरक्षण में हुआ।
अमीर खुसरो अत्यंत चतुर और बुद्धिमान थे। अच्छे लेखन के लिए अमीर खुसरो के गुरु समसुद्दीन मोहम्मद थे। छोटे से ही इनकी रूचि काव्य रचना में अधिक थी। यह बाल्यावस्था में बाल्यकाल में ही शेख निजामुद्दीन के शिष्य हो गए थे । उन्होंने फारसी तुर्की और अरबी के अतिरिक्त हिंदी का भी अध्ययन कर लिया था।
भारतीय संगीत में अमीर खुसरो का योगदान
अमीर खुसरो हिंदुस्तान की बड़ाई करते नहीं थकते थे । इस वजह से इनको तूती-ए-हिंद कहा जाता है, मतलब हिन्द का तोता ।
भारतीय संगीत के विषय में अमीर खुसरो ने कहा कि संसार के किसी भी देश के संगीत को भारतीय संगीत के समान नहीं कहा जा सकता भारतीय संगीत मन तथा प्राणो में ज्वाला भड़का देता है और पशु पक्षियों को भी मोहित करता है। संसार के विभिन्न भागों से लोग यहां संगीत सीखने आए पर वर्षों प्रयत्न करने पर भी सफल नहीं हुए ।
उन्होंने कुल 99 पुस्तकें लिखी जिनमें से 22 पुस्तकें उपलब्ध है ।
अमीर खुसरो जी के ग्रंथ :-
1. ऐतिहासिक ग्रंथ
ऐतिहासिक ग्रंथ – शीरी व खुसरो, मजनू व लैला, आईन-ए-सिकंदरी, हश्त – बहिश्त, तुगलकनामा । खुसरो का अंतिम ऐतिहासिक काव्य है । जिसका विषय खुसरो खां पर गयासुद्दीन तुगलक की विजय है। यह पुस्तक 1320 ईस्वी में पूर्ण हुई ।
2. साहित्यिक ग्रंथ
साहित्यिक ग्रंथ – तोहफतिससिगार, वास्तुलहयात, गुर्रतुलकमाल, नकीआ, निहायतुल कमाल, आदि ग्रंथ हैं । कहा जाता है कि उन्होंने भारतीय संगीत में अनेक महत्वपूर्ण कार्य किए ।
Amir Khusro के महत्वपूर्ण कार्य व उपलब्धि
- कव्वाली गायन की प्रथा को जन्म दिया।
- खुसरो पहले भी भारतीय और अभारतीय संगीतज्ञ में प्रतियोगिताएं कराते थे ।
- अबुल फजल के अनुसार खुसरो ने सीमित और ‘तातार’ की सहायता से कौल और ‘तराना’ का आविष्कार किया।
- फकीरउल्ला द्वारा लिखित ‘राग दर्पण’ के आधार पर अमीर खुसरो ने फारसी और भारतीय संगीत के मिश्रण से कुछ नए रागों की रचना की। जैसे सरपरदा, जिला, शहाना, पूर्वी, साजगिरी इत्यादि ।
- भारतीय विद्वानों को 12 स्वरों वाली मुकाम पद्धति से परिचित कराया और भारतीय ग्रंथों की विचारधारा ‘मुकाम पद्धति’ की ओर मोड़ दी।
- चिश्ती परंपरा में ‘बसंत’ और ‘रंग’ का प्रवेश ब्रजभाषा में विचरित गीतों का विभिन्न अवसरों पर अनिवार्य रूप से गाया जाना खुसरो की ही देन है ।
- उन्होंने अनेक पहेलियां दोहे और कुछ गीत भी लिखे हैं ।
- अमीर खुसरो ने कई तालों की भी रचना की जैसे त्रिताल, आड़ाचारताल, सूलफाक, झूमरा, पश्तो इत्यादि।
- इन्होंने पखावज को दो भागों में विभाजित करके तबले का भी अविष्कार किया।
अमीर खुसरो निसंदेह युग प्रवर्तक भारतीय थे । कव्वाली की गोष्ठियों में जब शेख निजामुद्दीन चिश्ती नाचने लगते तब अमीर खुसरो भी गाते थे।
सुल्तान की महफिल में खुसरो नई-नई गजलें प्रस्तुत करते थे । अलाउद्दीन खिलजी के युग में भी खुसरो दरबार से संबंधित रहे। मुल्तान से लौटने के पश्चात खुसरो ने लिखा है कि मुझे ईरानी संगीत के चार उसूलों, 12 पर्दो तथा सूक्ष्म रहस्य का ज्ञान है।
आज भी शेख निजामुद्दीन चिश्ती की दरगाह में खुसरो के ब्रजवासी गीत परंपरा के रूप गाए जाते हैं । अलाउद्दीन खिलजी ने प्रसन्न होकर खुसरो को अमीर की उपाधि से सम्मानित किया था।
अमीर खुसरो के नाम के साथ सितार के निर्माण की बात को भी जोड़ा जाता है। परंतु आज यह तथ्य प्रमाणित हो चुका है कि सितार के निर्माणकर्ता अमीर खुसरो नहीं थे बल्कि सितार वादक खुसरो खां नामक व्यक्ति द्वारा निर्मित हुआ था ।
मृत्यु लगभग 72 वर्ष की आयु में सन 1325 ईस्वी में निजामुद्दीन के स्वर्गवास के पश्चात इनकी मृत्यु हो गई । दिल्ली में इनकी कब्र तथा पायतानें बनाई गई हैं । जहां आज भी उनकी याद में कव्वाली का आयोजन किया जाता है ।
आमिर खुसरो की शायरी –
खुसरो दरिया प्रेम का, उलटी वा की धार।
जो उतरा सो डूब गया, जो डूब गया सो पार ।
amir khusro biography का यह अध्याय आपको यह बताता है की भारतीय शास्त्रीय संगीत में इनका योगदान कभी भी भुलाया नहीं जा सकता ।” सप्त स्वर ज्ञान ” से जुड़ने के लिए दिल से धन्यवाद ।
इसे भी पढ़े । बृहद्देशी मतंग मुनि कृत ग्रन्थ ” Brihaddeshi” by matanga muni